[कथा & आरती] चित्रगुप्त पूजा व्रत कथा | Chitragupta Puja PDF in Hindi

Chitragupta Puja Katha Aarti Hindi PDF Download

Chitragupta Puja Katha Aarti PDF in Hindi : नमस्कार साथियों आपके लिए प्रस्तुत है सत्यनारायण व्रत कथा आरती सहित | आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए चित्रगुप्त पूजा व्रत कथा PDF प्रदान करने जा रहे हैं ।
आप कथा को सुन भी सकते है | नीचे Youtube विडियो का लिंक दिया गया है | कथा व आरती को PDF में डाउनलोड करने का लिंक नीचे दिया गया है | 

Chitragupta Puja Katha in Hindi PDF

एक बार युधिष्ठिरजी भीष्मजी से बोले- हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परंतु यम द्वितीया का क्या पुण्य है? क्या फल है? यह मैं सुनना चाहता हूं। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए।

भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूं। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अंधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यम द्वितीया कहलाती है।

युधिष्ठिरजी बोले- उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो? इसमें किसका पूजन करें?

भीष्मजी बोले- हे युधिष्ठिर! पुराण संबंधी कथा कहता हूं। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे 4 मुंह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए जिनसे वेदवेत्ता भगवान ने चारों वेद कहे।
नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत को शीघ्र रचो।

हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग, जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चन्द्रमा को दीं।

कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियां पैदा हुईं। धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो।

ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम-पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूं कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूंगा जिससे कि कर्ताओं को फल मिलेगा, परंतु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनंत हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनंत हैं।

उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अत: मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूंगा? इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए, जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।

धर्मराज के इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा।
तब ब्रह्माजी ने कहा- हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूंगा।

इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 1,000 वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की-सी गर्दन, गूढ़ सिर, चन्द्रमा के समान मुख वाले, कलम-दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उससे पूछा कि तू कौन है?

तब उसने कहा- हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता किंतु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूं इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूं?

ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हंसकर कहा- तू मेरी काया से प्रकट हुआ है इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।

ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है, जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है। इतना कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए।

फिर वह पुरुष (चित्रगुप्त) कोटि नगर को जाकर चंड-प्रचंड ज्वालामुखी कालीजी के पूजन में लग गया। उपवास कर उसने भक्ति के साथ चंडिकाजी की भावना मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की- हे जगत को धारण करने वाली, तुमको नमस्कार है महादेवी! तुमको नमस्कार है। स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकांतरों को रोशनी देने वाली, तुमको नमस्कार है। संध्या और रात्रि रूप भगवती, तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली सरस्वती, तुमको नमस्कार है।

सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कांति देने वाली देवी, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चंडी देवी तुमको नमस्कार है।
उत्तम और न्यून गुणों से रहित वेद की प्रवृत्ति करने वाली, 33 कोटि देवताओं को प्रकट करने वाली त्रिगुण रूप, निर्गुण, गुणरहित, गुणों से परे, गुणों को देने वाली, 3 नेत्रों वाली, 3 प्रकार की मूर्ति वाली, साधकों को वर देने वाली, दैत्यों का नाश करने वाली, इन्द्रादि देवों को राज्य देने वाली, श्रीहरि से पूजित देवी हे चण्डिका! आप इन्द्रादि देवों को जैसे वरदान देती हैं, वैसे ही मुझको वरदान दीजिए। मैंने लोकों के अधिकार के लिए आपकी स्तुति की है, इसमें संशय नहीं है।

ऐसी स्तुति को सुन देवी ने चित्रगुप्तजी को वर दिया। देवीजी बोलीं- हे चित्रगुप्त! तूने मेरा आराधन-पूजन किया, इससे मैंने आज तुमको वर दिया कि तू परोपकार में कुशल अपने अधिकार में सदा स्थिर और असंख्य वर्षों की आयु वाला होगा। यह वर देकर दुर्गा देवीजी अंतर्ध्यान हो गईं। उसके बाद चित्रगुप्त धर्मराज के साथ उनके स्थान पर गए और वे आराधना करने योग्य अपने आसन पर स्थित हुए।

उसी समय ऋषियों में उत्तम ऋषि सुशर्मा, जिसको संतान की चाहना थी, ने ब्रह्माजी का आराधन किया। तब ब्रह्माजी ने प्रसन्नता से उसकी इरावती नाम की कन्या को पाकर चित्रगुप्त के साथ उसका विवाह किया। उस कन्या से चित्रगुप्त के 8 पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम ये हैं- चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण और 8वां अतीन्द्रिय। दूसरी जो मनु की कन्या दक्षिणा चित्रगुप्त से विवाही गई, उसके 4 पुत्र हुए। उनके भी नाम सुनो- भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्य्यावान्‌। चित्रगुप्त के ये 12 पुत्र विख्यात हुए और पृथ्वी-तल पर विचरे।

उनमें से चारु मथुराजी को गए और वहां रहने से मथुरा हुए। हे राजन्‌, सुचारु गौड़ बंगाले को गए, इससे वे गौड़ हुए। चित्रभट्ट नदी के पास के नगर को गए, इससे वे भट्टनागर कहलाए। श्रीवास नगर में भानु बसे, इससे वे श्रीवास्तव्य कहलाए। हिमवान अम्बा दुर्गाजी की आराधन कर अम्बा नगर में ठहरे, इससे वे अम्बष्ट कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भार्या के साथ मतिमान गए, इससे वे सूर्यध्वज कहलाए और अनेक स्थानों में बसे अनेक जाति कहलाए।

उस समय पृथ्वी पर एक राजा जिसका नाम सौदास था, सौराष्ट्र नगर में उत्पन्न हुआ। वह महापापी, पराया धन चुराने वाला, पराई स्त्रियों में आसक्त, महाअभिमानी, चुगलखोर और पाप कर्म करने वाला था। हे राजन्‌! जन्म से लेकर सारी आयुपर्यन्त उसने कुछ भी धर्म नहीं किया। किसी समय वह राजा अपनी सेना लेकर उस वन में, जहां बहुत हिरण आदि जीव रहते थे, शिकार खेलने गया। वहां उसने निरंतर व्रत करते हुए एक ब्राह्मण को देखा। वह ब्राह्मण चित्रगुप्त और यमराजजी का पूजन कर रहा था।

यम द्वितीया का दिन था। राजा ने पूछा- महाराज! आप क्या कर रहे हैं? ब्राह्मण ने यम द्वितीया व्रत कह सुनाया। यह सुनकर राजा ने वहीं उसी दिन कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को धूप तथा दीपादि सामग्री से चित्रगुप्तजी के साथ धर्मराजजी का पूजन किया। व्रत करके उसके बाद वह अपने घर में आया। कुछ दिन पीछे उसके मन को विस्मरण हुआ और वह व्रत भूल गया। याद आने पर उसने फिर से व्रत किया।

समयोपरांत काल संयोग से वह राजा सौदास मर गया। यमदूतों ने उसे दृढ़ता से बांधकर यमराजजी के पास पहुंचाया। यमराजजी ने उस घबराते हुए मन वाले राजा को अपने दूतों से पिटते हुए देखा तो चित्रगुप्तजी से पूछा कि इस राजा ने क्या कर्म किया? उस समय धर्मराजजी का वचन सुन चित्रगुप्तजी बोले- इसने बहुत ही दुष्कर्म किए हैं, परंतु दैवयोग से एक व्रत किया, जो कार्तिक के शुक्ल पक्ष में यम द्वितीया होती है, उस दिन आपका और मेरा गंध, चंदन, फूल आदि सामग्री से एक बार भोजन के नियम से और रात्रि में जागने से पूजन किया। हे देव! हे महाराज! इस कारण से यह राजा नरक में डालने योग्य नहीं है। चित्रगुप्तजी के ऐसा कहने से धर्मराजजी ने उसे छुड़ा दिया और वह इस यम द्वितीया के व्रत के प्रभाव से उत्तम गति को प्राप्त हुआ।

ऐसा सुनकर राजा युधिष्ठिर भीष्म से बोले- हे पितामह! इस व्रत में मनुष्यों को धर्मराज और चित्रगुप्तजी का पूजन कैसे करना चाहिए? सो मुझे कहिए।

भीष्मजी बोले- यम द्वितीया के विधान को सुनो। एक पवित्र स्थान पर धर्मराज और चित्रगुप्तजी की मूर्ति बनाएं और उनकी पूजा की कल्पना करें। वहां उन दोनों की प्रतिष्ठा कर 16 प्रकार व 5 प्रकार की सामग्री से श्रद्धा-भक्तियुक्त नाना प्रकार के पकवानों, लड्डुओं, फल, फूल, पान तथा दक्षिणादि सामग्रियों से धर्मराजजी और चित्रगुप्तजी का पूजन करना चाहिए। पीछे बारंबार नमस्कार करें।

हे धर्मराजजी! आपको नमस्कार है। हे चित्रगुप्तजी! आपको नमस्कार है। पुत्र दीजिए, धन दीजिए सब मनोरथों को पूरे कर दीजिए। इस प्रकार चित्रगुप्तजी के साथ श्री धर्मराजजी का पूजन कर विधि से दवात और कलम की पूजा करें। चंदन, कपूर, अगर और नैवेद्य, पान, दक्षिणादि सामग्रियों से पूजन करें और कथा सुनें। बहन के घर भोजन कर उसके लिए धन आदि पदार्थ दें। इस प्रकार भक्ति के साथ यम द्वितीया का व्रत करने वाला पुत्रों से युक्त होता है और मनोवांछित फलों को पाता है।

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  Chitragupta Aarti PDF in Hindi

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे॥

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी ।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै ।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी ।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,
प्रकटभये स्वामी ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कलम, दवात, शंख, पत्रिका,
करमें अति सोहै ।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये ।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणनमें धाये ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
यादतुम्हें कीन्हा ।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

दारा, सुत, भगिनी,
सबअपने स्वास्थ के कर्ता ।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
आसकरूँ जिसकी ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं ।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते ।
‘नानक’ शरण तिहारे,
आसन दूजी करते ॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे,

स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे ॥

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 Chitragupta Puja Vidhi in Hindi

  • प्राताकल स्‍नान करने के बाद पूर्व दिशा में बैठकर एक चौक बनाएं।
  • वहां पर चित्रगुप्त महाराज की तस्वीर स्थापित करें।
  • इसके बाद विधिविधान से पुष्प, अक्षत्, धूप, मिठाई, फल आदि अर्पित करें।
  • एक नई लेखनी या कलम उनको अवश्य अर्पित करें।
  • कलम-दवात की भी पूजा कर लें।
  • इसके बाद एक सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ओम चित्रगुप्ताय नमः लिखें।
  • इसके बाद चित्रगुप्त महाराज से अपने और परिवार के लिए बुद्धि, विद्या और लेखन का अशीर्वाद प्राप्त करें।
  • इसके बाद मंत्रोच्‍चारण करें।

FAQs

How to download Chitragupta Puja Katha Lyrics PDF ?

Direct link to download Chitragupta Puja Katha Hindi PDF along with Aarti is given on our website. Kindly visit the website and download Chitragupta Puja Katha PDF.

चित्रगुप्त पूजा व्रत व्रत कथा आरती सहित कैसे डाउनलोड करे ?

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